"वैसे वर्षा शायद उतनी बुरी भी नहीं है।" प्रभात की बोली हुई वह लाइन आज तक त्रिधा के कानों में गूंजती थी। दरवाजे पर लगातार दस्तक होने से त्रिधा अपने कॉलेज के जीवन की यादों से वर्तमान में लौट कर आई। त्रिधा ने अपने आंसू पोंछे और कमरे से निकलकर दरवाजा खोला। सामने उसका भाई विशाल अपनी पत्नी मान्यता के साथ खड़ा हुआ था। त्रिधा ने अपने आप को सामान्य सामान्य रखने का भरसक प्रयास करते हुए कहा - "कितनी देर लगा दी तुम दोनों ने, आओ बैठो मैं चाय बना देती हूं।"मान्यता ने आगे बढ़कर त्रिधा को बैठाया और बोली -