"एक बिनती है आपसे। माँ को इस बारे में पता न चले।"यक़ीन नहीं हो रहा था, की मैं अपने चाचाजी के सामने, मजबूर होकर, मिन्नते कर रही थी। वह मेरी मदद ज़रूर कर रहे थे, पर सिर्फ और सिर्फ अपने मतलब के लिए। लेकिन इसके अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं था। माँ की बीमारी के आगे मैं पूरी तरह से बेबस और लाचार थी।मेरी गुज़ारिश सुन कर, वह हंस पड़े।"मैं चाहे चुप रहूँ, पर विनीता, जब ये मकान खाली करना पड़ेगा, तब तुम उनसे क्या कहोगी? तब क्या उन्हें पता नहीं चलेगा? क्या वह तुमसे सवाल नहीं पूछेंगी?"उनकी