राधारमण वैद्य-भारतीय संस्कृति और बुन्देलखण्ड - 20 - अंतिम भाग

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सुधाकर शुक्ल और ’’देवदूतम’’ -राधारमण बैद्य विल्हण और पंडितराज जगन्नाथ के बाद म्लान काव्य के मन को पुनः प्रमुदित करने वाले श्री ’’सुधाकर’’ न केवल प्रदेश की विभूति हैं, वरन सम्पूर्ण संस्कृत जगत को अपनी स्निग्ध और कमनीय क्रांति से धवलित बनाये हैं। कवित्व पर अद्भुत और अखण्ड अधिकार शब्द भण्डार और अर्थो की मौलिक मनोरमता पर अनुपम आधिपत्य उनमें कालिदास की संकेत प्रधान व्यंजकता, भारवि का अर्थ गौरव, मेध का अधिकृत माधुर्य और श्री हर्ष का प्रतिपद प्रयुक्त भानुप्रासिकता तथा दार्शनिक मतों को संकेत करने वाली उक्तियां अनायास परिलक्षित हों उठती हैं। प्रगल्भ प्रतिभा के धनी संस्कृति