हाँ,मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग पांच)

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मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि दो बच्चों के साथ कहाँ जाऊँ ?क्या करूं!तभी ईश्वर की कृपा हुई कानपुर का एक लड़का मेरे कस्बे के स्टेट बैंक में नियुक्त हुआ।जाति से हरिजन होने के कारण उसे कहीं मकान नहीं मिल रहा था।उस समय जाति -पाति के बंधन और भी ज्यादा सख्त थे।मैंने माँ से कहा कि नीचे का कमरा दे देते हैं।पैसे की किल्लत भी है और कमरा खाली ही रहता है।जाति कोई उड़कर थोड़े सट जाएगा। कमरे के एक कोने ही बनाने- खाने को भी वह तैयार था।दिक्कत टॉयलेट की थी।मेरे घर में सदस्य संख्या अधिक थी।उसने