मातृशक्ति का जागरण और स्वामी सत्यमित्रानंद जी

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शब्दों के दैवी संगीत और लय में संजोया वह मानव जीवन जो मानो विधाता ने शंख से खोद कर मुक्ता से खींच कर मृणाल तंतु से सवार कर कुरज कुंद और सिंधु वार पुष्पों की धवल कांति से सजाकर चंद्रमा की किरणों के चूर्ण से प्रक्षालित कर और रजत रज से पोंछ कर जिसका निर्माण किया वह आद्योपांत मातृ शक्ति की अखंड रस धारा से आपलावित्त हैहर युग का ज्ञान कला देती रहती हैहर युग की शोभा संस्कृति लेती रहती हैइन दोनों से भूषित वेसित और मंडितहर मातृशक्ति एक दिव्य कथा कहती हैकला और संस्कृति को अपने आंचल में संजोए