योग और जीवन - योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर

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योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर (कविता) योग को शामिल कर जीवन में स्वस्थ शरीर की कामना कर। जीने की कला छुपी है इसमें, चित प्रसन्न होता है योग कर। घर ,पाठशाला या चाहे हो दफ्तर योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर। शिशु, युवा या चाहे हो वृद्ध योग ज्ञान दो, हर गॉंव-शहर। तन-मन को स्वस्थ रखकर बुद्धिविवेक को विस्तृत कर। इंद्रियों को बलिष्ठ बनाने को, योग से प्रारम्भ कर प्रथम पहर।विज्ञान के ही मार्ग पर चलकरयोग-साधना अब हमें है करना।आन्तरिक शक्ति विकसित करता,योग की सीढ़ी जो संयम से चढ़ता।ईश्वर का मार्ग आएगा नज़र,जोयोग से