मैं तो ओढ चुनरिया - 22

  • 5.9k
  • 1.8k

मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय बाईस औरत की जिंदगी भी क्या है , दिन रात चूल्हे चौंके में खपो । बाल बच्चे संभालो । रात में मन हो या न हो , थकान के मारे बदन बेशक दर्द कर रहा हो पर मरद का पहलू गरम करो । मरद का जब मन करे लाड लडाये और जब मन करे लातो घूस्सों से धुन कर रख दे । इस माधव नगर मौहल्ले की औरतें ऐसा ही अभिशप्त जीवन जीने को विवश थी । उस पर बात बेबात में घर भर के लोगों से गाली गलौज सुनना उनकी नियति थी