हड़ासंखन गोत्र

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हमारे बाबा समाज में अपनी हाजिरजवाबी के लिए प्रसिद्ध थे। गाँव में यदि किसी का मर्यादित मजाक उड़ाना है तो उस वक्त पूरे गाँव में वे बेजोड़ थे। गाँव की बात तो छोड़ ही दें, उनके जैसा पूरे इलाके में कोई न था। जैसा नाम तथा वैसा गुण भी। नाम उनका ‘ज्वाला प्रसाद’ था तथा उनके मुख में ‘शान्ति की ज्वाला’, आँखों में ‘करुणा की ज्वाला’ तथा दिल में ‘प्रेम की ज्वाला’ बसती थी। बातों को वे इस प्रकार बोलते थे कि सामने वाला निरुत्तर हो जाता था। साथ ही उसे शहद-सी मिठास भी मिलती थी। हास-परिहास का वह दौर