मैं तो ओढ चुनरिया - 21

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मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय इक्कीस बीस दिन की अनथक मेहनत के बाद नींव बन कर तैयार हो गयी । उस दिन हमने घर आकर पैसों की थैली निकाली और पैसे गिने । अभी भी उसमें पिचानवें रुपये पङे थे । माँ ने दो बार सिक्के गिने फिर मुझे गिनने को दिये । वाकयी पूरे पिचानवे रुपए बाकी थे यानि नींव और भरत का सारा काम सिर्फ चार सौ रुपये में निपट गया था । रात को रोटी खाने के बाद माँ ने वह थैली पिताजी के सामने रख दी । मैंने भी अपनी गुल्लक निकाली और