घटना वर्ष 1982 की है उस समय मुझे कानपुर से दिल्ली जाना पड़ा । दिन की गाड़ी से जाना था उस समय ट्रेन थी आसाम मेल अब उसका नाम परिवर्तित होकर उद्यान आभा एक्सप्रेस हो गया है। तो ट्रेन सुबह कानपुर से चलती थी और रात्रि तक दिल्ली पहुंच जाती थी। मैं निश्चित समय पर स्टेशन पहुंचा ट्रेन कुछ लेट हो गयी । उस समय कौन सा कोच कहाँ लगेगा इसके डिजिटल डिस्प्ले की सुविधा नहीं थी। तो एक ही रास्ता होता था कुली से पूछो कोच कहाँ लगेगा। खैर मैंने सोचा ज्यादा सामान तो है नहीं कुली का क्या