ताश के पत्ते- सोहेल रज़ा

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कहते हैं कि हर इंसान की कोई ना कोई..बेशक कम या ज़्यादा मगर कीमत होती ही है।कौन..कब..किसके..किस काम आ जाए..कह नहीं सकते। ठीक उसी तरह जिस तरह ताश की गड्ढी में मौजूद उसके हर पत्ते की वक्त ज़रूरत के हिसाब से अपनी अपनी हैसियत..अपनी अपनी कीमत होती है। जहाँ बड़े बड़े धुरंधर फेल हो जाते हैं..वहाँ एक अदना सा.. कम वैल्यू वाला पत्ता या व्यक्ति भी अपने दम पर बाज़ी जिताने की कुव्वत..हिम्मत एवं हौंसला रखता है। पुराने इतिहास के पन्नों को खंगालने पर पता चलता है कि आज से हज़ारों साल पहले चीनी राजवंश की राजकुमारी अपने रिश्तेदारों के साथ