ग्राम अभिधान और ’’पुरातत्व’’ राधारमण वैद्य भाषा-विज्ञान और पुरातत्व पारस्परिक सहयोगी हैं। केवल ग्राम नामावली और यत्र-तत्र बिखरी पुरा-सामग्री का सम्बन्ध और उसकी संगति पर विचार करना है। इसी प्रकार जातीय आस्पद भी इसमें सहायक सिद्ध होते हैं। समाजशास्त्र के अध्येताओं द्वारा यदि उस क्षेत्र के मूल निवासियों के प्राचीन रीति-रिवाज का अध्ययन किया गया है, जो उस अध्ययन में इसकी भी सहायता ली जा सकती है। इस प्रकार एक मिला-जुला प्रयत्न किया जाय तो बहुत-सी ज्ञान की अज्ञात परतें पलटी जा सकती हैं। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागाध्यक्ष यदि किसी क्षेत्र को पकड़कर इस प्रकार का मिला जुला प्रयत्न