राधारमण वैद्य-भारतीय संस्कृति और बुन्देलखण्ड - 1

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भारतीय संस्कृति और भक्तिराधारमण वैद्य आचारमूलाः जातिः स्यादाचारः शास्त्रमूलकः। वेदवाक्यं शास्त्रमूलं वेदः साधकमूलकः।। क्रियामूलं साधकश्च क्रियापि फलमूलिका। फलमूलं सुखं चैव सुखमाननन्दमूलकम।। जाति के इस शास्त्रोक्त सिजरे से आदि स्रोत आनन्द का पता चलता है। वैसे तैत्तिरीय उपनिषद की भृगुवल्ली में वरूण के पुत्र भृगु की एक मनोरंजक कथा भी दी गई है। भृगु ने जाकर वरूण से कहा कि ’’हे भगवान ! मैं बह्म को जानना चाहता हूँ।’’ पिता ने तप करने की आज्ञा दी। कठिन तपस्या के बाद पुत्र ने समझा- अन्न ही ब्रह्म है। पिता ने फिर तप करने को कहा। इस बार पुत्र कुछ और गहराई में