धीरे धीरे दिन, महीने, साल यूं ही गुजरते रहे । बच्चे बड़े हो गए लेकिन शिवानी के मन की कड़वाहट दूर नहीं हुई। उन दोनों के बीच फासले समय के साथ और बढ़ते गए। जितना दिनेश, शिवानी के पास आने व उसे समझाने की कोशिश करता , उतनी ही शिवानी की तरफ से दूरियां और बढ़ जाती। धीरे-धीरे उसने भी इसे अपने जीवन की नियति मान, हालात से समझौता कर लिया था। दोनों ही पति पत्नी मानसिक पीड़ा से गुजर रहे थे । दिनेश तो ऑफिस जाने के बाद कुछ समय के लिए अपना दुख भूल भी जाता लेकिन शिवानी