कभी- कभी विश्वास ही नहीं होता कि रिश्ते इतने भी कच्चे हो सकते हैं।पड़ोस की अम्मा आख़िरकार जीने की इच्छा मन में लिए चली ही गईं।महीनों से वे यमराज से लड़ रही थीं।अपने जीवन की सावित्री वे खुद थीं।इधर बहू आजिज़ थी कि --अब क्यों जीना चाहती हैं ?पूरी जिंदगी तो जी चुकीं।अस्पताल में कुछ दिन वेंटीलेटर पर रहीं, फिर आई सी यू में लाखों का खर्चा हो गया।पूरे परिवार को भूखा मारेंगी क्या?आज उन्हें जबरन घर लाएंगे ।डॉक्टरों का क्या उन्हें तो पैसा बनाना है।इज़ाजत ही नहीं दे रहे।नलियों से भोजन- पानी दे रहे हैं ।ऑक्सीजन सिलेंडर लगा हुआ