किरदारों की दुकान ( व्यंग्य )

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किरदारों की दुकान अमा यार ................. आप क्या सोचने लगे, ज्यादा ना सोचो, सोचने से लोगों का सिर दुखने लगता है और फिर ........... आपका ये नाचिज खिजमतदार आखिर किस दिन काम आयेगा। लो साहब हम बात कर रहे है किरदारों याने चरित्रों की। साहित्य लिखने वाले हमेशा ही किरदारों की खोज में रहते है। वहीं पढ़ने वाले चरित्र चित्रण को घोटकर पी रहे होते है। अब नामचीन लेखकों को उनके बंद कमरों में वास्तविक किरदार मिलने से रहे। वे अपनी कल्पना की उड़ान से अनोखे, अजीब और बेतुके किरदार पैदा करने की कोशिश करते है।