अतीत के गलियारें से

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नींद कोसों दूर हैं आज, अतीत के गलियारे मै खड़ी जो हूँ, अतीत के पल चाँदनी रात मै आँखो के सामने नृत्य कर रहे हैं... और मै मूक दर्शक की भाँति खड़ी हूँ l आज का सारा मंजर मुझे अतीत की गलियों मै धकेलने की साजिश कर रहा है मानो l दिन को भाग- दौड़ करती ये दुनिया रात को कितनी वीरां, सुनसान सी हो जाती हैं, कितनी खामोसी पसर जाती हैं चारों और, सच मै कितनी शान्ति हैं, सुकूँ हैं इस सन्नाटे मैं... l कितना कुछ बदल जाता हैं वक्त के साथ, पर मै आज भी वही खड़ी हूँ...