डिसीजन- फ़ैयाज़ हुसैन

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हर बात को सोचने ..समझने का नज़रिया सबका अपना अपना एवं अलग अलग होता है। ये ज़रूरी नहीं कि आप किसी की बात से या कोई आपकी बात से इतेफाक रखता हो। खास तौर पर जब आप अपने मन में किसी बात को ले कर एक निश्चित धारणा बना चुके होते हैं तो तमाम तर्कों कुतर्कों के बाद भी आप अपने तयशुदा नज़रिए से डिगना या किसी अन्य नज़रिए से सोचने का मन नहीं बना पाते। ऐसी ही मतभिन्नता कई बार जिगरी दोस्तों की टूटती दोस्ती या बिछुड़ते प्रेम का सबब भी बनती है। दोस्तों..आज बात कर रहा हूँ एक ऐसे