कोरोना से सामना - 3

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और बेटे का इलाज शुरू हो गया था।जैसा मैंने इसी पोस्ट में पूर्व में भी लिखा है।मेरे उपन्यास "वो चालीस दिन और लोकडौन" के अंदर पूरा विवरण आएगा।यहां इस लेख का विषय अलग है।इसलिए मूल बात पर आता हूँ।बेटा, पुत्रवधू और दोनों पोते जयपुर में थे।उसे पूरा एक साल हो चूका था।उसकी किडनी आदि जांचे करानी थी।इसलिए मैं और पत्नी जयपुर गए थे।वहां से 2 अप्रैल को लौटे थे।पत्नी के सर्दी जुकाम खांसी हो गई थी।मुझे भी हरारत सी महसूस हो रही थी।मैं केमिस्ट से दवा ले आया। जब। कई दिन दवा लेने पर तबियत ठीक नही हुई तब पत्नी