मेघना- कुसुम गोस्वामी

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मीडिया और मनोरंजन के तमाम जनसुलभ साधनों की सहज उपलब्धता से पहले एक समय ऐसा था जब हमारे यहाँ लुगदी साहित्य की तूती बोलती थी। रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और मोहल्ले की पत्र पत्रिकाओं की दुकानों तक..हर जगह इनका जलवा सर चढ़ कर बोलता था। बुज़ुर्गों के डर..शर्म और लिहाज़ के बावजूद जवानी की दहलीज चढ़ते युवाओं, विवाहितों एवं अधेड़ हाथों में या फिर उनके तकियों के नीचे चोरी छिपे इनका लुकाछिपी खेलते हुए मौजूद रहना एक आम बात थी। इनमें मुख्यतः प्रेम, बिछोह या किसी सामाजिक बुराई जैसे तमाम मसालों का इस प्रकार से घोटा लगा..फॉर्म्युला तैयार किया जाता था