बाहर नारों की आवाज शांत होते ही वह लीडर जैसी दिखनेवाली संभ्रांत महिला नंदिनी के करीब पहुंची और उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे दिलासा देती हुई बोली ” बेटी ! ईश्वर की इच्छा के आगे किसकी चलती है ? तुम्हारा और अमर का साथ बस इतने ही दिनों का था । अब धीरज रखने के सिवा और किया भी क्या जा सकता है ? चलो ..उठो अब हमारे साथ चलो ! कुछ रीति रिवाज हैं जिन्हें हमें पूरा करना है । “ पता नहीं नंदिनी ने उसकी बात सुनी या नहीं लेकिन अगले ही पल वह रोती बिलखती भाग खड़ी