प्रतिभा का पहलू

  • 5.7k
  • 1
  • 1.6k

कहानी-- प्रतिभा का पहलू आर. एन. सुनगरया, श्रवण कुमार को उदासीन बुझा-बुझा, दिग्‍भ्रमित, अक्रियाशील, निठल्‍ला, बैठे-ठाले, जहॉं-वहॉं, इधर-उधर, निरूद्धेश डोलते-डालते, घूमते-घामते, भोजन के समय पर क्‍वार्टर लौट आता है। धर्मशाला समझकर। कोई चिन्‍ता-फिकर नहीं।