मैं तो ओढ चुनरिया - 14

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मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय - चौदह अभी तक आप पढ रहे थे , मेरे होने के बाद माँ की जिंदगी में व्यवस्था आने लगी थी कि अचानक पिताजी की नहर वाली नौकरी में छँटनी शुरु हो गयी । एक महीना तो जैसे तैसे निकल गया पर बकरे की माँ कब तक खैर मनाती । जिस दिन पगार मिली , उसी दिन काम पर से जवाब मिल गया । कुछ दिन जमा पुंजी से काम चला पर यह लंबे समय तक चलने वाला नहीं था इसलिए दम्पति ने फैसला किया कि एक बार फिर से सहारनपुर जाकर