मूकदर्शक

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उस दिन होली थी।होली का त्यौहार पहले प्रेम का प्रतीक समझा जाता था।औरत आदमी,बच्चे बूढ़े सब होली के रंग में मस्त एक दूसरे पर रंग डालते,गुलाल लगाते।पर अब होली का रूप विकृत हो गया है।आजकल होली पर गन्दी गालियां बकी जाती है।कीचड़ गोबर फेंका जाता है।औरतो को छेड़ा जाता है।अश्लील हरकत की जाती है।कभी कभी नोबत मार पीट तक आ जाती है।उस दिन होली की वजह से ट्रेन में भीड़ कम थी।वे लोग ही यात्रा कर रहे थे।जिनका घर से बाहर जाना जरुरी था या जो त्यौहार पर अपने घर पहुंचना चाहते थे।मैं जिस कोच में बैठा था,उसमे भी गिने