जीने की नई राह

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जीने की नई राह प्रियंका गिल कमरे में बेचैनी से चहलकदमी कर रही थी दिसंबर की कड़क सर्दी में भी माथे पर पसीने की बूंदें झलक रही थी आई थी अपनी बेचैनी कम करने के इरादे से गिलास में पैक बनाकर कमरे में पड़ी आराम कुर्सी पर बैठ गई …राज जिसके घर जाने से ना तो वह स्वयं को रोक पाती थी ना ही वहां से आने के पश्चात सहज हो पातीं थीं । आज उसने जो देखा सुना, उसे महसूस कर वह आश्चर्यचकित थीं... क्या किसी रिश्ते में इतना माधुर्य, एक दूसरे के प्रति चिंता एवं समर्पण भी हो सकता