विवेक तुमने बहुत सहन किया बस! - 3

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अध्याय 3 रूपला बिल्कुल ऊंची चोटी पर चढ़कर खड़ी हुई तो नीचे उतर न पाने की वजह से तड़पने लगी। अपनी होंठों को बाहर निकाल कर बोली। "वि....वि... विष्णु...! तुम यहां कैसे?" "क्यों मैडम... मुझे मुन्नार आना नहीं चाहिए ?" "तुमने तो नहीं आऊंगा बोला था...?" "आप के साथ नहीं आऊंगा बोला था।" रूपला विवेक को देखकर बोली "क्यों जी... यह कैसी बात कर रहा है?" विवेक हंसा। "क्यों जी हंस रहे हो ? इसके आने के बारे में आप को पहले से ही मालूम है लगता है?" रूपला घूर कर देखीं। "इसका मतलब... यह आपका जौली ट्रिप नहीं है।