दिनेश की इसी सादगी पर तो शिवानी मरती थी। पहली बार वह उससे इतने दिन दूर रही थी। यह कुछ दिन ही उसे साल बराबर लग रहे थे। वह जल्दी से जल्दी सारा काम समेट दिनेश के साथ बैठ अपने दिल की बहुत सारी बातें करना चाहती थी और साथ ही उससे उसकी सुनना भी । दिनेश की आंखों में छुपे प्रेम निमंत्रण को उसकी आंखों ने पढ़ लिया था। वो सब सोच ही उसे एक सुखद एहसास की अनुभूति हो रही थी। सारा काम निपटाने व खाना खाने के बाद, उसे बस एक ही बात खल रही थी कि