कथा साहित्य में पाश्चात्य प्रभावभारतीय समाज पश्चिम के संपर्क में यूं तो पहले ही आ गया था पर उसकी जीवन शैली, उसकी विचारधारा, उसकी कला और उसके साहित्य पर पश्चिमी प्रभाव वर्तमान स्थिति के प्रारंभ में स्पष्ट दिखाई देने लगा। भारत में अंग्रेजी राज ने इस प्रक्रिया को तीव्र किया। फिर भी पाश्चात्य जीवन मूल्य भारतीय समाज में स्वतंत्रता के पूर्व निर्विरोध रूप से स्वीकृत नहीं हो सके । एक तो अंग्रेज शासकों के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम, दूसरे पश्चिमी संस्कृति द्वारा अपनी सांस्कृतिक निजता के विरुपन की आशंका के कारण अस्वीकार औऱ विरोध की स्थिति रही। फिर भी आधुनिक युग