दावत-अदावत (व्यंग्य ) दावत शब्द सुनते ही लज़ीज पकवानों के की महक से मुंह में पानी आना स्वाभाविक ही है । शादी - ब्याह हो , जन्म दिवस या कोई और ही दिवस बिना दावत के सब अधूरा ही रहता है । दावत न हो तो उत्सवों की रौनक ही अधूरी रहती है । आप और हम भी किसी अवसर की सफलता और असफलता को स्वाद के पैमानें पर ही नापते है । अब दावतों के इस चलन ने समुह भोज का रूप ले लिया है । हम तो ठहरे ठेठ देहाती टाईप के आदमी