पुरुष एक उद्योगी और उत्क्षृंखल इकाई है परिवार बसा कर रहना उसका सहज स्वभाव नहीं है यह नारी की ही कोमल भावात्मक कुशलता है जो पारिवारिक रिश्ते बनाकर प्रसन्नता एवं आनंद की परिधि में परिभ्रमण करने के लिए लालायित करती हैं। नारी ही पुरुष की उद्योग उपलब्धियों को व्यवस्था एवं उपयोगिता प्रदान करती है । नारी के कारण ही पुरुष पुत्र वान और प्रसन्न चैता है पत्नी के रूप में नारी का महत्व असीम और अनुपम है पत्नी ही उसकी सुख दुख की संगिनी किंकर्तव्यविमूढ़ ता की स्थिति में सच्ची सलाहकार प्रिय शिष्य रमण काल में रमणी एकांत में आनंद