दलदल वार्षिक परीक्षा के लिए चार दिन पहले भरे अपने एग्जामिनेशन फॉर्म को वह अभी-अभी तीसरी बार अच्छी तरह जाँचकर आया है. फॉर्म देखते वक़्त वीरेन्द्र भी उसके साथ था. अपनेआप को अब वह काफी आश्वस्त-सा महसूस कर रहा है. उसे लग रहा है जैसे उसके सिर से एक भारी बोझ उतर गया है. मन-ही-मन उसने इस बात का फैसला किया है कि अब वह किसी भी वहम-शहम के चक्कर में नहीं पड़ा करेगा और एक सामान्य ज़िंदगी जीने की कोशिश करेगा. लेकिन इस बोझ के उतर जाने की ख़ुशी का अहसास अभी उसे पूरी तरह हो भी नहीं पाया