खौलते पानी का भंवर - 9 - रोशनी का अंधेरा

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रोशनी का अंधेरा ‘‘क्यों बे, अपनी पढ़ाई-लिखाई का भी कुछ ख़याल है या सारा दिन इन किस्से-कहानियों में ही डूबे रहना है?’’ राकेश पर उसके बाबूजी बिगड़ रहे थे. पिछले कुछ महीनो से उसके बाबूजी उसकी पढ़ाई का ख़याल कुछ ज़्यादा ही रखने लगे थे. उन्हें हर वक़्त बस उसकी पढ़ाई की ही चिंता लगी रहती. वे उससे ज़्यादातर उसकी पढ़ाई, इम्तहानों, नंबरों, नौकरी वगैरह की ही बातें करते. राकेश के ऐसे हर काम को, जो उसकी पढ़ाई से संबंधित न होता, नहीं करने को कहते. अगर उन्हें राकेश के दो-चार कामों पर ही एतराज होता, तब भी चलो कोई