खौलते पानी का भंवर - 1

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‘‘आठ हज़ार तो आप अब दे दीजिए और बाकी के आठ हज़ार आख़िरी सुनवाई से पहले दे देना.’’ कल शाम से यह वाक्य उसके दिमाग़ पर हथौड़े की तरह बज रहा था. कहाँ से लाए वह आठ हज़ार रुपए? उस जैसे पन्द्रह हजार रुपए महीना पाने वाले एक मामूली क्लर्क के लिए आठ हज़ार रुपए कोई छोटी-मोटी रकम तो है नहीं कि झट जेब से निकालकर दे दी. लेकिन खन्ना साहब को रुपए अदा करना भी तो बहुत जरूरी है, क्योंकि वे ही उसके हाथों से फिसलती दीख रही उसकी नौकरी बचाकर उसे दर-दर की ठोकरें खाने से बचा सकते