विश्वासघात--भाग(२३)

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उधर गाँव में, माँ! बहुत दिन हो गए,मैनें बाबा को टेलीफोनकरके ख़बर नहीं पूछी और जब से लीला बुआ भी गईं हैं,तब से उनसे भी मुलाकात नही हो पाई,लगता सब बहुत ही मशरूफ हैं,इसलिए मैं सोच रही हूँ कि डाकखाने जाकर टेलीफोन करके सबकी ख़बर पूछ आऊँ,बेला ने मंगला से कहा।। हाँ...हाँ..क्यों नहीं बिटिया! और लगता है सब नाटक में ज्यादा ही ब्यस्त हो गए हैं तभी तो संदीप और प्रदीप का बहुत दिनों से कोई ख़त नहीं आया,मंगला ने बेला से कहा।। ठीक है तो मैं आज ही विजय के संग डाकखाने जाकर टेलीफोन पर सबका हाल