कर्म सिद्धांत और मनोविज्ञान

  • 12.8k
  • 3.5k

श्रीमद भगवत गीता में कहा गया है "कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन" भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद द्वारा कथित इस कथन से एक बात पूर्णता स्पष्ट होती है कि मानव का अधिकार केवल कर्म करने में ही है। ठीक इसी तथ्य की पुष्टि करते हुए श्री गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कर्म प्रधान विश्व करि राखा जो जस कराई सो तस फल चाका गोस्वामी जी के इस कथन से कर्म की प्रधानता तो सिद्ध होती है साथ ही यह भी स्पष्ट है कि कर्म के अनुसार ही फल का चक्र भी निरंतर गतिशील रहता है । जैन धर्म में भी कर्म वाद की प्रामाणिकता