राजनारायण बोहरे - आलोचना की अदालत

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राजनारायण बोहरे की कहानियां यानी हमारी आत्म कथाएं केबीएल पांडे विगत दशकों में कहानी ने जितने रूप गढे हैं वे रचना शीलता का आह्लाद उत्पन्न करते हैं पर इसके साथ ही पाठ की प्रतिक्रिया में यह भी अनुभव किया जा रहा है कि कहानी में हमारे आसपास की दुनिया और उससे जुड़े हमारे छोटे बड़े अनुभव कम होते जा रहे हैं कहानी के विमर्श में एक बात यह भी कहीं जा रही है कि विपुल लेखन के बीच नए पन की तलाश में अनेक कहानियों के कथ्य और रूप के प्रयोग जीवन से दूर तथा अविश्वसनीय लगने लगते हैं ऐसी