काली पुतली 

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काली पुतली ये गाँव से विकसित होता छोटा सा कस्बा था । इस शहर में कुछ सड़कें ऐसी भी थी जिन पर रातों को लोग जाने से कतराते थे । आज मै जहाँ हूँ वहाँ से ही कभी शहर का वीराना प्रारम्भ होता था । इस शहर के कुछ कलाकारों नें मुझे कागज पर उकेरा । चित्र से निकाल कर मुझे अपने घड़े से छलकते पानी और उसमें भीगते हुए वस्त्रों के साथ फौहारे के बीच चौराहे पर बिठा दिया गया । मेरे काले रंग ने मुझे एक अलग ही आकर्षण और कलात्मक रुप प्रदान कर दिया ।