#तलाश (1भाग) कविता भारी कदमों से वो बस की और बढ़ी, उसे लगा शमित उसे शायद रोक लेगें.., इसलिये स्टेशन तक छोड़ने आये हों..,कुछ तो कहेगें .., बस में चढ़ते कविता ने पीछे मुड़ के देखा ..शमित नही थे वहां कहीं , धक रह गई थी ,एक बार भी नही कहा "पहुंच के फोन करना ,जल्दी वापस आना, कुछ भी नही कहा,रुलाई सी आने की बैचेनी में गला भर आया ,कविता चुपचाप बस में बैठ गई,। जब तक बस निकल नही गई इसी उम्मीद से बस