आलोचना की जड़ता को तोड़ता विमर्श -अवध बिहारी पाठक प्रसिद्ध आलोचक शंभुनाथ ने एक जगह कहा है कि "आलोचना का पहला काम पीछे लौटती सभ्यताओं के छली बिम्बों पर प्रति आक्रमण तेज करते हुए उस साहित्य की पुनः प्रतिष्ठा है जिसमें सभ्यताओं के आगे की दिशा में मानवीय विकास के लिए संघर्ष हो अभी हाल ही में प्रकाशित के.बी.एल. पाण्डेय की कृति "आलोचना एक और पाठ' लगता है कि शंभुनाथ के कथन को मूर्तिमान करती है क्योंकि यह कृति छली बिम्बों को हटाने के लिए संकल्पित है। पांडेय जी की "पुष्प गंध" "ऐसा क्यों होता है" काव्य कृतियों के साथ