उजाले की ओर - 29

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उजाले की ओर ------------------ आ, एवं स्नेही मित्रो स्नेहिल नमस्कार मुझे भली प्रकार याद है जब हम छोटे थे तब हमारे यहाँ प्रतिदिन ही कोई न कोई मेहमान आया ही रहता था |माता-पिता ’अतिथि देवो भव’का पाठ पढ़ाते थे | कई बार ये अतिथि यानि मेहमान कोई एक-दो घंटे अथवा एक-दो दिन के नहीं बल्कि हफ़्तों तक रहने वाले होते थे जिनकी खातिरदारी की ज़िम्मेदारी बच्चों पर भी सौंपी जाती थी!इनके अतिरिक्तपास-पड़ौस के गाँव से किसी वर्ष कोई चाचा की लड़की आ रही है तो किसी मौसी की लड़की ने शहर में किसी स्कूल में प्रवेश ले