सुष्मिता ट्रेन की खिड़की से बाहर देखती हुई ताजी हवाओं को एक बार में ही अपनी सांसों में भर लेना चाहती है.... ऐसी ताजी हवाएं जो किसी कैदी को एक लंबे अंतराल के बाद कैद से मुक्ति के उपरांत प्राप्त होती है, सुष्मिता को ऐसे ही आजादी की अनुभूति इस वक्त हो रही थी.. वह इस आजादी को खुलकर अनुभूत करना चाह रही थी पिता के घर में तो उसके ऊपर इतनी पाबंदियाँ थी कि उसका वहां दम घुटता था. "घर.. घर क्या! .. बस एक जेलखाना ही था ,