उजाले की ओर - 28

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उजाले की ओर ------------------ स्नेहिल मित्रो सस्नेह नमस्कार दुनिया रंग-बिरंगी भाई ,दुनिया रंग-बिरंगी ! सच है न दुनिया रंग-बिरंगी तो है ही साथ ही एक गुब्बारे सी नहीं लगती ?जैसे अच्छा-ख़ासा मनुष्य अचानक ही चुप हो जाता है ,जैसे अचानक ही कोई तूफ़ान उभरकर कुछ ऐसा सामने आ जाता है कि पता ही नहीं चलता कब ,क्या हो रहा है ? फिर भी हम न जाने किस पशोपेश में रहते हैं,किस गुमान में रहते हैं,हमें लगता है कि हम अमर हैं और सदा ही दुनिया में बसने के लिए आए हैं|यहीं हम गलती कर जाते हैं और आँखें बंद करके