संघर्ष पार्ट 1 शुरू में तो विश्वास ही नहीं हुआ और बेहद आश्चर्यचकित थी मैं, फिर एक अनकही नफ़रत से मेरा सर्वांग झुलस उठा। क्षोभ हुआ कि ऐसे कायर और निर्दयी पुरुष की आज तक, मैं इतनी इज्जत कैसे करती रही हूँ? तो क्या आदमी को पहचानने कि मुझमें कोई क्षमता ही नहीं है? बस ऊपरी कलेवर देखकर प्रभावित हो जाती हूँ? अभी तक तो मैं स्वयं को भाग्यशाली मानती रही थी पर अपने ससुराल वालों का यह स्वरूप आज पहली बार मेरे समक्ष आया