"यह लो।""थैंक्स।"और दोनों चाय पीने लगे।। चाय पीने केे बाद निशा पलँग से उठते हुुुए बोली, अपना घर तो दिखाओ""मेरा नही।अब यह घर तुम्हारा है।""मेरा क्यो?""घर तो तभी बनता है,जब औरत आती है।बिना औरत जिंदगी खाना बदोस है।""मेरा नही हम दोनों का है,"निशा बोली,"घर देख लू।फिर साफ सफाई ,खाना आदि काम भी है।""अभी हाथो की मेहंदी छुटी भी नही और काम।अभी रहने दो,कुछ दिन।""मैं रहने दूंगी तो कौन करेगा काम।""एक ही रात मे औरत कितनी बदल जाती है।वह अपनी जिम्मेदारी समझने लगती है,"देवेन, निशा की प्रशंसा करते हुए बोला,"अभी कुछ दिन रहने दो।अभी तुम्हे दिल्ली घुमानी है।फिर रात की