जूते की आत्मकथा 

  • 18.1k
  • 3.1k

जूते की आत्मकथा मैं एक जूता हुँ , अरे साहब वही जूता जो आप सर्दी,गर्मी और बरसात में बिना मुर्रवत के रगड़ते रहते है , अरे वही जूता जो सम्मान का प्रतीक बन कर आप के चरणों में सजता रहा हूं, वही जूता जो सर पर पड़े तो अपमान का प्रतीक होता है और वही जूता जिसकी बहनों को चप्पल ,सेंड़ल और स्लीपर के नाम से भी जाना जाता है । आप तो बस युं समझ लीजिए की जूता होना मेरा भाग्य भी है ,कर्म भी और कर्तव्य भी । सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि केवल उछाले