अँधेरे से उजाले की ओर

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अँधेरे से उजाले की ओर आज जब मैंने अमित को राह में देखा तो मैंने घृणा स्वरुप अपनी निगाहें फेर ली। वह मुझे अकस्मात् ही राह में मिल गया था जब कि मैं एक आवश्यक काम से जा रहा था। जब कभी भी वह मेरे सामने आ जाता तो मैं उसकी ओर देख कर घृणा स्वरुप थूक देता था। इसके साथ ही मेरे मन में क्रोध की ज्वाला भड़कने लगती थी परन्तु मैं बड़ी कठिनाई से अपने आप को बस में कर पाता था। इस घृणा के साथ ही साथ मुझे उन बीते हुए दिनों की याद आ