चोलबे ना - 2 - बैटन, लाइब्रेरी, कसाब और देशद्रोही

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मैं सुबह-सुबह ‘रमता जोगी, बहता पानी’ की तरह बहता ही जा रहा था। एकदम बरसाती नदी की तरह! कि ना जाने कहाँ से चच्चा अचानक ही मेरे सामने प्रकट हो गए। एकदम ही रामायण और महाभारत में दिखाए गए आकाशवाणी करने वाले किरदारों की तरह! मैं भी हैरान होकर शक्तिमान की तरह गोल-गोल घूमने के बाद उनकी ओर आँखे फाड़कर देखने लगा परन्तु जैसे ही उनकी किलविश के जैसी फटी-फटी आँखों को देखा तो मैं गिलहरी की तरह अपने डर को कुतरते हुए बोला, ‘क्या बात है चच्चा? आज कुछ ज्यादे ही नाराज लग रहे हो! देश में कहीं कुछ