वो भारत! है कहाँ मेरा? 3 (काव्य संकलन) सत्यमेव जयते समर्पण मानव अवनी के, चिंतन शील मनीषियों के, कर कमलों में, सादर। वेदराम प्रजापति ‘‘मनमस्त’’ दो शब्द- आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो भारत है कहाँ