जीत - हार

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जीत - हार हम सामाजिक प्राणी हैं। हमें आदि काल से जीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है । आज के आपाधापी वाले समय में हमारे लिए अनेक स्तरों पर संघर्ष करना आवश्यक हो गया है । सामाजिक स्तर पर इन संघर्षों को प्रतियोगिता कहते है, जिनमें विजेता को ही समाज में सम्मान प्राप्त होता है । विजेता के विजय भाव को तो सब देखते और सराहते है ,लेकिन पराजय की कराह सुनना शायद ही किसी को पसंद हो । समाज ने जीतनुमा छल दम्भ में अपने आप को समेट लिया है । पराजय की निराशा के भय