मैं तो ओढ चुनरिया - 4

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मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय चार आषाढ बीत गया। सावन आ गया । दोपहर ढलते ही हवा में थोङी ठंडक घुलने लगी थी । कहीं आसपास ही बारिश हो रही होगी । माँ ने मुझे इतना कस कर तौलिए में लपेट लिया कि मेरा साँस घुटने लगा था । घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल हो गया । मन कर रहा था कि यह तौलिया पैर मार - मारकर कहीं दूर फेंक दूँ और ये औरतें मुझे कपङों से लादती जा रही थी । मेरा हर विरोध बेकार हुआ जा रहा था । झाई ने मुझे